इश्क़ की चुस्कियां
इश्क़ की चुस्कियां
ख्याल उनका ज़हन से हटाते रहे,
कुछ रोज़ यूँ भी दिल बहलाते रहे,
अजीब अफरा-तफरी दोनों जानिब,
वो जवाब, हम सवाल तलाशते रहे,
वाक़िफ़ तो हैं मगर मुख्लिस नहीं,
दिलकशी में बस सब्र आज़माते रहे,
कोरे दिल पे बिखरे स्याह रंजो-ग़म,
रंगीन ख़्वाबों से हकीकत सजाते रहे,
हवा में शामिल उस जिस्म की खुश्बू
महसूस रूह को वो लम्स करवाते रहे,
गुस्ताखी बेसबब हो ना जाए ख़्वाब में,
रातभर ख्यालों के मंज़र हम जगाते रहे,
'दक्ष' बहके बिना जिंदगी जियें कैसे हम,
इश्क़ की चुस्कियां खुद को पिलाते रहे।