" इंतज़ार "
" इंतज़ार "
रात भर तलाश थी,
एक अहसास की !
बादल बरसते रहे ,
तलब थी लेकिन प्यास की !
दामिनी गिरी यहाँ -वहां ,
मैं खुली आकाश थी !
शीत-सी लहर-लहर,
मगर, हरारत भरी वो रात थी !
वीरान थी डगर - डगर,
चाह थी तेरी मगर !
तुम थे रूठे उधर ,
सुलह की ना आस थी !
थक कर अब चूर हूँ,
नींद की आगोश में,
सवेरा होने को है ,
लेकिन, तेरी आहट की
अब भी आस थी !