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Praveen Gola

Tragedy

4  

Praveen Gola

Tragedy

टूटे सपने बिखर गये

टूटे सपने बिखर गये

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टूटे सपने बिखर गये ,
हम फिर भी देखो सँवर गये ,
क्या हुआ जो खुद ना जीते ?
उनकी जीत से पिघल गये |

उनके तंज रोज दर्द देते ,
फिर कैसे भला खुद को बढ़ने देते ?
बिखरे सपनो का क्या गम करना ?
ये रोज टूट कर नया मर्ज देते |

हमने सब कुछ अपना लुटा दिया ,
अपनी चाहत का सिला दिया ,
उन्होने तब भी नाखुश सा होकर ,
ढेरों गालियों को हम पर बरसा दिया |

एक आदत सी हो गई सब सहने की ,
चुप रहने और कुछ ना कहने की ,
वो पति परमेश्वर सदा कहलाये ,
हम पत्नी बनकर भी खुद से जी ना पाये |

उनको मुबारक नई जीत हमेशा ,
हमने कभी नहीं उनकी राहों को खींचा ,
वो तब भी हम पर दोष लगायें ,
हमेशा चरित्रहीन हमको बतलायें |

हम दे ना सके उन्हे अग्निपरीक्षा ,
ऐसा क्या किया हमने जो टूटा भरोसा ?
हम पग पग अपनी लाज बचायें ,
वो तब भी हमे कुचल कर इतरायें |

हमे गम नहीं अपने सपने मरने का ,
वो पूरा करें हर सपना जीवन का ,
कभी जो हमसे बहुत ऊपर उठ जायें  ,
हमे कुचल उस दिन बादशाह कहलायें ||







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