प्रेम
प्रेम
वक़्त यू॑ थमता नहीं
च॑चल मन कहीं रूकता नहीं
पर आज ये मन क्यों ठहर सा गया
शायद प्रेम की गहराइयों में खो सा गया
वो प्रेम इबादत में, वीणा की हर झंकार में
समर्पण में, दिये की हर जोत में
सर्वस्व प्रेम ही प्रेम गूंज रहा
मां की दुआओं में, पिता की हर सीख में
वो भाई - बहन के लाड़ में, वो प्रियतम के प्यार में
प्रेम की अनुभूति में ये मन डूबता चला गया
वो कान्हा की खनकती बा॑सुरी, वो राधा का प्रेम
मीरा की भक्ति, वो कृष्ण की रासलीला
प्रेम की हर छवि में मन सिमटता चला गया
अब ना तो ये मन कुछ ढूंढ रहा
ना अ॑र्तमन को टटोल रहा
बस हर कण में हर रूप में
हर दुआओं में हर भक्ति में
प्रेम - प्रेम ही झलक रहा !