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Swati Kashyap

Romance Classics

4.7  

Swati Kashyap

Romance Classics

प्रेम

प्रेम

1 min
625


वक़्त यू॑ थमता नहीं

च॑चल मन कहीं रूकता नहीं

पर आज ये मन क्यों ठहर सा गया

शायद प्रेम की गहराइयों में खो सा गया


वो प्रेम इबादत में, वीणा की हर झंकार में

समर्पण में, दिये की हर जोत में

सर्वस्व प्रेम ही प्रेम गूंज रहा


मां की दुआओं में, पिता की हर सीख में

वो भाई - बहन के लाड़ में, वो प्रियतम के प्यार में

प्रेम की अनुभूति में ये मन डूबता चला गया


वो कान्हा की खनकती बा॑सुरी, वो राधा का प्रेम

मीरा की भक्ति, वो कृष्ण की रासलीला

प्रेम की हर छवि में मन सिमटता चला गया


अब ना तो ये मन कुछ ढूंढ रहा

ना अ॑र्तमन को टटोल रहा

बस हर कण में हर रूप में

हर दुआओं में हर भक्ति में

प्रेम - प्रेम ही झलक रहा !


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