प्रेम
प्रेम
प्रेम नही महज शब्द यह एक भावना
जो व्यक्तित्व को बदल दें
विचारों में परिवर्तन कर दें,
नही किसी अभीष्ट की है कामना।
व्यक्ति,समय ,परिस्थिति विशेष से प्रेम,
नहीं है प्रेम का विस्तृत ये अर्थ।
सम्पूर्ण जगत के लिए मन में शुभेच्छा,
कल्याणार्थ उठे कदम।
परिस्थिति और समय से न हो प्रभावित
यही है प्रेम का का विशेष अर्थ।
प्रेम भाव है सर्वस्व समर्पण का,
कर दें सभी खुशियों का अर्पण।
होंठ पर मुस्कान लाने हेतु
हो प्रयास निरंतर।
प्रेम महज एक नहीं है शब्द
यह है भावना।
प्रेम में रूह का हो मिलन,
दिलों का संयोजन,
नही फर्क हो स्थान और दूरियों से।
प्रेम बस हो पवित्र पूजा सम
श्रद्धा और त्याग का प्रतीक।
आत्मिक खुशी का साधन,
स्वार्थ से परे।