प्रेम एक अनुबंध
प्रेम एक अनुबंध
असली प्रीत के अंतःकरण की एक परिभाषा का यही है!
प्रेम एक अलिखित प्रतिदान है मौन की मुखर भाषा यही है!
वो मुकम्मल प्रेम है जिसमें मिलन रहता अधूरा है!
किसी को खिड़की से दिखता आधा चाँद,किसी को पूरा है!
प्रेम वो आसक्ति है जैसे नदी के किनारे मिलने को बेक़रार!
साथ बहकर भी कभी इक दूसरे को जो न पाये करें इसरार!
प्रेम वो बाती है जो जलकर करे जग में उजाला खुशियाँ तालाशे!
प्रेम का प्रारब्ध तो बस प्रेम है जो होता है आत्मा का आत्मा से!
प्रेम उन्मुक्त है अविरल भाव है एक स्वीकृत अनुबंध जैसा!
राधा कृष्ण की तरह एक दूजे में समाहित प्रीत है कुछ ऐसा !

