परछाईं.. !
परछाईं.. !
और अब...
अब डर लगता है
अपनी ही परछाईं से
जाने ये कौन है,
किसकी परछाईं है ये
मेरी या फिर...?
तब लगता था
क्या हुआ जो कोई नहीं
मैं हूँ ना
और मैं ही क्यूँ
मेरी परछाईं तो है ना..!
लगता था ये परछाईं नहीं
सहचरी है मेरी /
मेरे सुख दुःख में कदम से कदम
मिलाकर चलने वाली
माँ है ये मेरी
जो चलती है साथ साथ मेरे
मेरे हर श्वास में हर धड़कन में
मेरी परछाईं में सिमट गई है वो फिर से
और अब.. =
अब डर लगता है
अपनी ही परछाईं से..
जाने ये कौन है,
किसकी परछाईं है ये
मेरी या फिर...?
