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mamta pathak

Tragedy

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mamta pathak

Tragedy

पोटली

पोटली

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रिश्तों की पोटली लिए,

उम्र के कई रंग गुज़र गए।

अब जब खुद को देखा,

तो जाना हम तो खुद ही बिखर गए।


एक -एक कर सब रिश्ते,

निकलते चले गए।

हमें तन्हा कर के ख़ुद,

महफ़िलों की रौनक बन गए।


पोटली में अब सिर्फ,

रिश्तों की गांठे रह गयी।

उम्र के इस मोड़ पर,

रिश्तों की पोटली ,

मुझे खोखला कर गयी।


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