पोटली
पोटली
1 min
232
रिश्तों की पोटली लिए,
उम्र के कई रंग गुज़र गए।
अब जब खुद को देखा,
तो जाना हम तो खुद ही बिखर गए।
एक -एक कर सब रिश्ते,
निकलते चले गए।
हमें तन्हा कर के ख़ुद,
महफ़िलों की रौनक बन गए।
पोटली में अब सिर्फ,
रिश्तों की गांठे रह गयी।
उम्र के इस मोड़ पर,
रिश्तों की पोटली ,
मुझे खोखला कर गयी।