पंछी कि चाह
पंछी कि चाह
मैं पंछी हूं ए इंसान
मेरी चाह ये खुला आसमान है।
पिंजरा चाहे तू सोने का दे,
भरपेट चाहे तू खाने का दे,
मखमल चाहे तू बिछाने का दे,
पर ये उन्मुक्त गगन ही मेरा जहान है,
मैं पंछी हूं ए इंसान,
मेरी चाह ये खुला आसमान है ।
कैद में चाहे जितने दे दे मुझ को तू आराम,
पुचकारते हुए चाहें जितना रख ले
मेरी सुविधाओं का तू ध्यान,
AC कि हवा में चाहें जितनी
कर ले मेरी तू देखभाल,
रटवाते हुए चाहे जितना दिलवा दे
जग से तू सम्मान,
पर वृक्षों की शाखाओं पर अटखेलियां
करना ही मेरा सच्चा स्वाभिमान है,
मैं पंछी हूं ए इंसान,
मेरी चाह ये खुला आसमान है...