कुदरत का इंतकाम
कुदरत का इंतकाम
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मदमस्त होकर ताक़त में
जो खेल तूने रचाया था,
युवा दरख़्तो का छेदन कर
घर जो अपना बड़ा बनाया था,
अब उसका भयंकर
अंजाम भी देख,
कुदरत का भयावह
इंतकाम भी देख।
ये जो हालत तेरे शहर की है
उसका सेहरा निश्चय तेरे ही सर बंधेगा,
जो कत्लेआम तूने दरख़्तो का किया
उसका अंज़ाम अब पूरा शहर भुगतेगा।
हरे-भरे-आबाद कुदरत को
अपनी लालच से तूने ख़ूब छला है,
उजाड़ कर मुकों के हर्षित आलय
तू घृणित अमानवीय
चाले जो चला है,
अब उसका भयंकर
अंजाम भी देख,
कुदरत का भयावह
इंतकाम भी देख।
ये बाढ़, तूफ़ान, दुष्काल, भूस्खलन
सब तेरे ही कृत्यों कि प्रतिक्रिया है,
ख़ूब घात किए है इस धरती पर तूने
अब इसे भुगत
ये उऋण होने की क्रिया है।