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Sudershan kumar sharma

Tragedy

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Sudershan kumar sharma

Tragedy

बिछुड़ी यादें

बिछुड़ी यादें

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गांब छोड़ कर शहर बस गए, चैन की नींद गंवाई है,

जीवन का सुख चैन खोकर पाई सिर्फ तन्हाई है। 


बेचना पड़ा ईमान धर्म तक घर की शान बनाने को,

संतोष बेच दिया तृष्णा अपनाई चैन के दिन निभाने को। 


जमीं गांब की बेच दी झूठी शान बनाने को, मोटर, कार

वंगला खड़ा कर डाला झूठी मुस्कान लाने को। 


गुम कर दी मिठास जुबान की कड़वाहट ने ली अंगड़ाई है

रस्सीयों की खाट छोड़कर गद्दों की परमाई है, नींद उड़ गई रातों की दिन को रहती 

कठिनाई है। 


दूध, दही सब नकली मिलता,

आचार, मुरब्बों की जगह रख दी अब दवाई है। 


अपनी माटी की सुगंध छोड़कर, नकली स्प्रे लगाई है। 

खो दिया मिट्टी का चुल्हा, गैस पर हर चीज पकाई है, च

ला गया सादापन अपना हर तरफ चलाकी छाई है। 


सैलून मैं अब जा रहे हैं बाल

कटवाने भूल चुके हैं नाई को

अकेलेपन में सब जूझ रहे हैं

भूल चुके चाची ताई को। 


बेच दिए संस्कार सुदर्शन पाल ली बेवफाई है,

टहलना फिरना कर दिया वंद सभी ने,

ब्लड प्रेशर शूगर की बिमारी छाई है, बहुत तनाव है

जीवन में नींद की गोली खाई है। 

खोखले पड़ गये रिश्ते नाते

नहीं बची उनमें सच्चाई है

गाँव बेचकर शहर खरीदा

चैन की नींद गवाई है।


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