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Sumit Mandhana 'गौरव'

Tragedy

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Sumit Mandhana 'गौरव'

Tragedy

तदबीर

तदबीर

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रह गई सब तदबीर धरी की धरी,

अचानक ही जब छूट गई नौकरी!


बड़े सुनहरे सपने लेकर 

आया था नए शहर,

पल में चकनाचूर हो गए 

गया सब कुछ बिखर।


बहना के जल्दी से पीले करूंगा हाथ,

माँ बाबूजी को लेकर रखूंगा अपने साथ।


छोटे भाई को अच्छी स्कूल में पढ़ाऊंगा,

पढ़ा लिखा कर उसे मैं इंजीनियर बनाऊंगा।


यूँ समझो मैं पहुंच गया था किसी शिखर पर ,

पर यह क्या धड़ाम से गिरा सीधा जमीं पर!


कर्मचारियों की कटौती में मेरी कटौती हो गई, 

स्थायी नौकरी से अचानक मेरी छुट्टी हो गई।


अब फिर रहा मायूस सड़कों पर मारा मारा,

फिर काम मिल जाए दे दो कोई नौकरी दोबारा।


मां बाप और भाई बहन बैठे हैं आस लगाए,

फिर से उन्हें मेरा मनी ऑर्डर मिल जाए।


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