दुआओं में मुझे याद रखना
दुआओं में मुझे याद रखना
कुछ ख़ास नहीं
बस इतना ही कहना था
जो कुछ भी था अब तलक
हम दोनों के दरमियाँ, भूल जाना
आज मुश्किल तो होगी
कल यही मुश्किल आदत भी बन जाएगी
आषाढ़ की भीगी-भीगी मुलाकातें
तेरी यादों में बीती चांदनी रातें
जानती हूँ पल-पल सताएंगे
मगर जब सफ़र यहीं तक था तो
रास्ते भी यहीं जुदा हो जाएँ तो अच्छा
सच कहती हूँ कहना तो बहुत कुछ था
पर बात जुबां तक आती नहीं
तुझे समझाऊँ भी तो कैसे
तू आज भी नादान जो है
ज़माने की छोड़ तेरी बात कुछ और है
थोड़े में समझ सके तो समझ लेना
जो कहना चाहती हूँ उसे सुनने से पहले
नाजुक दिल अपना थामकर रखना
वहाँ जा रही हूँ
लौटकर जहाँ से फिर कोई
पुरानी दुनिया में कभी आता नहीं
मुझे भूलकर बस ख़्याल अपना रखना
किसी और मंज़िल पर ध्यान अब रखना
बस अब बची थी गुजारिश यही
भूले भटके जब याद मेरी आए
अपनी दुआओं में मुझे याद रखना।