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Umesh Shukla

Tragedy

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Umesh Shukla

Tragedy

नफरत...

नफरत...

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नफरत के शोलों को निरंतर

हवा दे रहे वोटों के व्यापारी

जाति धर्म के खांचों में बंटी

जनता की मति गई है मारी


सब कुछ जान बूझकर भी

लोग आफत लेते हैं मोल

असहिष्णुता के माहौल में

लुप्त हुए विनम्रता के बोल


बुद्धिजीवियों की चुप्पी भी

अब बन गई है आत्मघाती

देश और समाज से गायब हो

रही निर्भीकता की परिपाटी।


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