आखिरी मुलाकात
आखिरी मुलाकात
एक दिन हुस्न और इश्क में गजब ठन गई
उस दिन की वो मुलाकात आखिरी बन गई
हुस्न तो अपने सौंदर्य के नशे में मगरूर था
आवेश में दोनों अभिमानी भृकुटियां तन गई
इश्क समंदर देखता रहा बरबादी का मंजर
हुस्न के जाल में उसकी तो जान पर बन गई
इश्क की चिरौरी , दुहाई कुछ काम ना आई
संदेह की एक दीवार दोनों के मध्य बन गई
डूबा पड़ा है इश्क गम के दरिया में आज तक
हुस्न की भी जान विरह की आग में जल गई!