पुतला
पुतला
शीशे में एक पुतला खड़ा हैं
माथे पे उसकी शिकन सी हैं
पलकों की तक हलचल नहीं
फिर भी चेहरे पे थकान सी हैं
पल पल अटकती हैं सांसे
यह हवाओं में कैसी है हैरानी
बात कोई नई नहीं यह
बस नए किस्सों की पुरानी कहानी
एक तूफान की आहट लेकर
आंखों के किनारे तर आए हैं
कुछ ख्वाब रुखसत होने को
बेबसी में नैनों के दर आए हैं
मजबूती से बांधी मुट्ठी
मजबूरी में छूट रही हैं
आंखों की पकड़ से बूंद बूंद
ख्वाहिशें दिल की टूट रही हैं
आंखों में कुछ ऐसी घुटन हैं
धड़कन भी कुछ देर ठहरी हो जैसे
नजरे मिलाओ तो सहम जाता हैं दिल
यह आंखें दरिया जितनी गहरी हो जैसे
चेहरे से रौनक रूठी हो जैसे
हर आस दिल की टूटी हो जैसे
जिस सच्चाई में जिए आज तक
बदकिस्मती से वही झूठी हो जैसे।