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Shravani Balasaheb Sul

Tragedy

4  

Shravani Balasaheb Sul

Tragedy

पुतला

पुतला

1 min
341


शीशे में एक पुतला खड़ा हैं

माथे पे उसकी शिकन सी हैं

पलकों की तक हलचल नहीं

फिर भी चेहरे पे थकान सी हैं


पल पल अटकती हैं सांसे

यह हवाओं में कैसी है हैरानी 

बात कोई नई नहीं यह

बस नए किस्सों की पुरानी कहानी


एक तूफान की आहट लेकर

आंखों के किनारे तर आए हैं

कुछ ख्वाब रुखसत होने को

बेबसी में नैनों के दर आए हैं


मजबूती से बांधी मुट्ठी

मजबूरी में छूट रही हैं

आंखों की पकड़ से बूंद बूंद

ख्वाहिशें दिल की टूट रही हैं


आंखों में कुछ ऐसी घुटन हैं

धड़कन भी कुछ देर ठहरी हो जैसे

नजरे मिलाओ तो सहम जाता हैं दिल

यह आंखें दरिया जितनी गहरी हो जैसे


चेहरे से रौनक रूठी हो जैसे

हर आस दिल की टूटी हो जैसे

जिस सच्चाई में जिए आज तक

बदकिस्मती से वही झूठी हो जैसे।


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