STORYMIRROR

Anand Prakash Jain

Abstract Tragedy Classics

4  

Anand Prakash Jain

Abstract Tragedy Classics

चार दिन की जिन्दगी

चार दिन की जिन्दगी

1 min
216

जब चार दिन की ही है जिन्दगी

फ़िर गिरने से काहे को डरना,

दोबारा उठकर लड़ने में आखि़र हर्ज ही क्या है?

चार दिन बाद तो वैसे भी है मरना।


ये दुनियां जो चाहें कहती रहे 

इसके मुफ़लिस* लब्जो से मुझे क्या करना,

मुझे तो हरगिज़ अपना सर्वोत्तम पाना है

चार दिन बाद तो वैसे भी है मरना।


मेरी हार जीत तो मैं ख़ुद तय करता हूं

दूसरों के ख्यालों से मुझे क्या करना,

अपनी शर्तों पर गुज़र किया है आगे भी करूंगा

चार दिन बाद तो वैसे भी है मरना।


आत्मसम्मान की जंग में गर मिटना नैसर्गिक हो

फ़िर भी भिड़ने से मुझे नहीं है डरना,

बच गए तो सुकून से रह सकेंगे बाक़ी

चार दिन बाद तो वैसे भी है मरना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract