जलियाँवाला बाग़(दोहे)
जलियाँवाला बाग़(दोहे)
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जलियाँवाला बाग़ जब, हुआ खून से लाल
खूनी साका देखकर, हुआ हिया बेहाल
वैशाखी की शुभ घड़ी, उठती मन में पीर
बाग़ बना शमशान जब, बहे नयन से नीर
बंदूक चली जोर से, दरवाजे थे बंद
भगदड़ लोगों में मची, साँस बची बस चंद
बच्चे बूढ़े औ' युवा, लगे बचाने जान
आपाधापी थी मची, बाग़ हुआ वीरान
कुआँ लाश से भर गया, कहता अपना दर्द
गर्मी भी थी शिखर पे, रूह हो गई सर्द
जलियांवाला बाग़ की, कथा मरणोपरांत
निर्मम हत्याकांड से, 'पूर्णिमा' थी अशांत।