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नम्रता सिंह नमी

Tragedy

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नम्रता सिंह नमी

Tragedy

पलायन

पलायन

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ज़िन्दगी की जरूरत थी

कुछ ज्यादा कमाने की इच्छा थी

ज़िन्दगी को बेहतर करने की तलाश

ले कर कदम उठ गए थे

गाँव से शहर की ओर


माता पिता की छाया छोड़

आत्मीय जनों का मोह छोड़

चले थे कदम एक नई दुनिया

की ओर

किया था पलायन

गाँव से शहर की ओर


बामुश्किल खर्चों को काट

अपने अरमानों को समेटे जुड़ाए कुछ पैसे

और उन्ही से बदली अपने घरों की तस्वीर


मन मसोस कर हर रात रोते रहे

अपनों से बिछड़ कर बस काम

काम काम करते रहे

ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के लिए

अकेले गुमसुम काम में मग्न जीते रहे


ये आज क्या हुआ<

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ये पलायन पलट कैसे गया

फिर शहरों से गाँव की ओर

सब सपने छोड़

आंखों में आँसू भर के

पैरों में छाले लिए

चल पड़े असीमित यात्रा को

कब पहुंचेगे कैसे पहुंचेंगे

पता नही

बस एक आस

जन्मभूमि की याद

घर की याद

पेट में भूख और प्यासे होंठ

मीलों मीलों का सफर करने चल पड़े

वो कदम पलायन की और


झूमते से जो कदम जो कभी

उठे थे सपनों की ख़ातिर

आज पलायन को मजबूर हैं

आँखों में निराशा

और थके कदमों से

चल पड़े हैं पलायन की ओर

फिर से उसी छाँव की तलाश में

ये लाखों कदम

आज लौट रहे हैं

पलायन की ओर



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