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नम्रता सिंह नमी

Abstract

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नम्रता सिंह नमी

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लकीरे

लकीरे

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क्या इन लकीरों में ही कैद है

मेरे सपने मेरे अरमान मेरा प्यार 


आज एक नई लकीर बनाई है

उसमें न जाने कितने

अधूरे खवाब सजाये हैं


और चल पड़ी हूँ उस मंज़िल की तरफ

 जहाँ मेरी राह ये तकते हैं।


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