गुमनाम मौत
गुमनाम मौत
अंतिम यात्रा के लिए अब वो
चार कंधे भी जरूरी नहीं रहे
रोते बिलखते वो स्नेहीजन भी नहीं रहे।
कोरोना के इस दंश ने
सूनी कर दी इस यात्रा को
जाते वक्त नहीं रो पाए
तेरे चेहरे को चूम के
तेरे सीने से लिपट कर
मौत ऐसी भी अकेली होगी
सोचा न था।
तुम्हारे बिना मेरी ये यात्रा भी नहीं होगी
ये कहने वाले
आज बिना कुछ कहे सुने और इंतज़ार किये
चुपचाप चल दिये
मौत ऐसी सूनी होगी सोचा न था।
ज़िन्दगी भर ये अवसाद
नासूर बन चुभेगा...
जब तुम गए तो हम कहीं नहीं थे
मौत ऐसी भी सूनी होगी सोचा न था।
