STORYMIRROR

नम्रता सिंह नमी

Abstract

3  

नम्रता सिंह नमी

Abstract

सांस

सांस

1 min
148

कितनी अनोखी है ये सांसे


जन्म से ले कर मृत्यु तक

कदम दर कदम साथ

चलती जा रही

ना रुकती न ठहरती

न पल भर को आराम करती

चलती जा रही ये सांसे


पल भर को तुम जो ले लो

सुकून की सांसे..

इन्हें भी दो पल को चैन आ जाये

अनवरत लगी हुई है...

हमे जिलाने में


क्रोध में सांसों का उखड़ना

या दौड़ या मेहनत

जब सांसे थक जाती है

तो पल भर को ठहर हम

धीमे से सांसों को भरते हैं....

फिर वही दिन रात

अनवरत सांसों का चलना...


भोर की प्रथम प्रहर में

गर जो भर सको

जीवन दायिनी सांसे

यकीन मानो

मज़ा आ जाये और

प्रफुल्लित हो जाये

ये सांसे


धीमे से सांसों का बदन में घुलना

और अप्रतिम आनंद का अनुभव..

भोर का वो प्रथम प्रहर

और हवा संग अटखेलियां करती ये सांसे


आनंद आनंद और बस आनंद





Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract