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नम्रता सिंह नमी

Abstract

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नम्रता सिंह नमी

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अनजाने कंधे

अनजाने कंधे

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नहीं मिले मेरे अपने तो क्या

वो चार कंधे शामिल थे

अनजाने अनदेखे वो कंधे

ना जाने मेरे किस जन्म का कर्ज उतार चले


कभी उम्र भर सोचा न था

अपनो के बिना यूँ ही चला जाऊंगा

ना देखा न सुना

ना चार बाते की

बस वो अनजाने कंधे मेरा कर्ज उतार चले


लगता है तुम्हीं मेरे अपने थे

जब कोई न था तुम्हीं थे

मुझे आखिरी सफर पर ले जाने को

ना जाने मेरे किस जन्म का कर्ज उतार चले।


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