पल
पल
सहेज के रखती रही ये पल
फुरसत से खर्च करूँगी ये पल
बस यही सोचती रही
करती रही भरपाई जरूरतों की
अरमानों की हिफाज़त की
मारती रही अपने अरमानों को
अपनी जरूरतों और इच्छाओं को
सोचा एक दिन करूँगी अपने ऊपर खर्च अपने पल
आज है वो दिन आया
जो बरसों से जोड़े अपने पल
वो आज खर्च कर लूं वो पल
आज खोली अपनी बचत तो
ना पाये वो पल जो रखे सजो वो पल
वो पल मुरझा गए सूखे फूल की तरह
वो सुनहरे बालों से चाँदी के बालों की तरह
खो गए वो पल
मैंने तो खर्चे नहीं किये वो पल
जाने कैसे बीत गए वो पल
काश समय से जी पाती वो पल
बस और नहीं बस और नहीं
अब से जीऊँगी अपने वो पल
उन्मुक्त निर्विचार अपने पल
अपने लिए सिर्फ स्वयं पर पल।।