पिता
पिता
प्रसूति गृह के सामने हम घबराये हुए तैर रहे थे
धड़कन न जाने क्यूँ तेजी से दौड़ रही थी।
शायद तेरा स्वागत करने को
सारा जग द्वार पर खड़ा था।
ममता की कोख में पंख प्रसारित करके
तू गहरी नींद में सो रहा था।
नन्ही सी जान मेरी,
तेरे फिक्र में आशा के दीप जलाये
कोई रातों जाग रहा था।
कहीं हलचल से तू घबरा ना जाए,
तेरी माँ धीरे से पग थाम रही थी।
तू रोता हुआ बाहर आ गया,
तेरे पहले आँसू किसी के होंठ पर भरपूर हँसी ला दिये।
पिता बनने का पहला एहसास कुछ ऐसा था,
हमें जमीन पे जन्नत महसूस करा दिया।
तेरी छोटी-छोटी हरकतें अब मेरी आदत सी बन गई।
जी ...चाहता है मेरा ,
कि दिन भर तेरे प्यार में खोया रहूँ
साँझ,सवेरे तेरा रूप निहारूँ।
तू राम बनके पिता के वचन पालन कर,
में धृतराष्ट्र जैसा पुत्र मोह दिखाऊँ।
