अकर्म कर्म
अकर्म कर्म
कभी मुझे लात् पड़ता है ,
कभी घूँसा पड़ता है कश्मीर में..
सह लेता हूँ सहजता से सबकुछ
संविधान की लाज जो बचानी है।।
कभी थप्पड़ खा लेता हूँ
कभी पत्थर भी चबा जाता हूँ....
भाई मान के गले लगाता हूँ तुम्हें
हर बार समझाने की कोशिश कर रहा हूँ ।।
करूँ तो क्या करूँ ......
धाराएं तो हाथ को बांध रखी है मेरे....
आजकल बुद्धिजीवि मुझे गुंडे कहने लगे हैं ,
आतंकी के ऊपर दागे गए
एक एक गोली का हिसाब
मानवाधिकार वाले मांग रहे हैं।
मुझे तो मोक्ष्य मिल जाएगा
निष्काम कर्म जो है मेरा....
मैं सैनिक हूँ ...
जन्म-मृत्यु के चक्र से परे हैं।
कफन माथे पे बांधे डटकर खड़े हैं।