पिंजरे में बंद पक्षी
पिंजरे में बंद पक्षी
पिंजरे में बंद पक्षी जैसे दर्द अनगिनत
मानों पंख काट दिये हों सारे, असलियत
उड़ान की चाहत अब बची सिर्फ स्वप्नों में
खुले आसमान में बढ़ रही रचित पन्नों में
दिनभर चहचहाना हमारा बंद हो गया
जंगल सी रिमझिम अश्रुपावस अब गया
घर में बिता रहे लेखनी संग,सफर सुहाना
तकदीर का खेल हुआ अब पुराना अनजाना
जाग उठी इसमें देखो उड़ान की इच्छा
हौसला से पिंजरे से मुक्ति,खत्म प्रतीक्षा
पिंजरे को बना देगे आशियाना सुहाना
हैं स्वतंत्र हम नभ में उड़, छेड़ देंगे तराना।