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पीढ़ी

पीढ़ी

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न जानते हो न समझ रहे कैसे तुमको समझाए,

इस सदी के गमन से बोलो कैसे मेल कराए ?

तुम पूर्वजो के युग मे होता था न कुछ भी ऐसा,

अब हो गया जीवन कठिन न रहा तुम्हारे जैसा।


तुमको सब मिलता था सस्ता, तब लोग सभी अच्छे थे,

न भागा-दौड़ी थी इतनी सब पास रहा करते थे।

काम पे जाकर भी बस तुम परिहास किया करते थे,

एक गाँव मे सारा जीवन था न भ्रमण कभी करते थे।


आज है तेरा समय मगर ये चक्र नहीं रुकेगा,

कल तेरा वारिस भी तुझसे ये कटु वचन कहेगा।

जो बोया वो काटेगा तू तब पछताना क्यों है ?

तेरी करनी का ये फल खुद को समझाता फिर तू है।


उन्होंने अपनी दुनिया का तुझको परिचय करवाया था,

सतत तेरी किलकारियों को संगीत कहके निहारा था।

समय मूर्ख अब है तेरा तू उनको अपना संसार दिखा,

जो छूट गए उनके पल उनको फिर जीने का शौक जगा।


वो लोग जो तेरे खाना खाने से ही खुश हो जाते हैं,

तू जो भी कहता आँख मूँद के सब राज़ी कर जाते हैं।

अशक्त नहीं आयूध है ये जो खोटे को भी खरा कहे,

शिकन चेहरे पे न दिखती उनके एकांत आँसू बहें।


माँ-पिता के मान को तू जोड़ आत्म मान से,

जा पूछ उन गरीब से लाचार से फकीर से।

गरीब खुद को कहते न वो क्योंकि आने चार है,

तरसते हैं उन हाथों को जो तेरे सर पे चार है।।


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