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Sajida Akram

Tragedy

3  

Sajida Akram

Tragedy

पीड़ा

पीड़ा

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बिटिया के न होने से,

घर में अब नहीं लगती रौनकें,

मुंडेर पर अब नहीं गाते पंछी,

बगिया की बेलों की रफ्तार कम

हो चली है।


चुग्गा का इंतजार करते कबूतर,

अब सुबह करतब नहीं दिखाते

चाय की प्याली से ज़ायक़ा ग़ायब

हो चला है।


डाकिये से चिठ्ठी लेने अब

कोई नहीं दौड़ता

त्यौहार के आने से पहले,

उसकी तैयारी का त्यौहार अब नहीं

मनाया जाता।


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