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Deepali Mathane

Tragedy

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Deepali Mathane

Tragedy

पिघल रही हूॅं मोमसी

पिघल रही हूॅं मोमसी

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पिघल रही हूँ मोम सी तिल-तिल उजाला फैलायें

बेख़ौफ़ तूफानों में भी घिर-घिर के धुऑं बन के छाये


रोशन रहे जहाँ सारा ये सोच-सोच के ख़ुद को जलायें

महफ़िलों की रौनक बन के दिल-ए-ख़्वाहीशों को सुलायें


बेतहाशा तड़पती हसरतें पर राज़-ए-मुस्कान होंठों में खिलाये

बेख़याली के आलम में दर्द-ए-अश्क प्यार से बहलायें


मुसलसल जलती लौ सी हर कोई बेपरवाही से आज़मायें 

धुऑं -धुऑं ज़िदगी हर पल ढूंढे आरज़ू-ए-हयात के साये


तन्हाईयों में ग़म-ए-हयात जब भी दर्द भरे नग़मे गायें

बुझती हुई लौ के सारे अरमान फिर से जगमगायें


तर्ज-ए-आशिक़ी में जलती हुई शमा को परवाना छोड़ ना पायें

बेबसी में भी ढूंढे दिल तूफानों में दिल-ए-हबीब के साये



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