पिघल रही हूॅं मोमसी
पिघल रही हूॅं मोमसी
पिघल रही हूँ मोम सी तिल-तिल उजाला फैलायें
बेख़ौफ़ तूफानों में भी घिर-घिर के धुऑं बन के छाये
रोशन रहे जहाँ सारा ये सोच-सोच के ख़ुद को जलायें
महफ़िलों की रौनक बन के दिल-ए-ख़्वाहीशों को सुलायें
बेतहाशा तड़पती हसरतें पर राज़-ए-मुस्कान होंठों में खिलाये
बेख़याली के आलम में दर्द-ए-अश्क प्यार से बहलायें
मुसलसल जलती लौ सी हर कोई बेपरवाही से आज़मायें
धुऑं -धुऑं ज़िदगी हर पल ढूंढे आरज़ू-ए-हयात के साये
तन्हाईयों में ग़म-ए-हयात जब भी दर्द भरे नग़मे गायें
बुझती हुई लौ के सारे अरमान फिर से जगमगायें
तर्ज-ए-आशिक़ी में जलती हुई शमा को परवाना छोड़ ना पायें
बेबसी में भी ढूंढे दिल तूफानों में दिल-ए-हबीब के साये