"ख्वाहिशों का समंदर"
"ख्वाहिशों का समंदर"
ख्वाहिशों का ये समंदर कभी कम नहीं होता है।
मरकर भी कभी इच्छाओं का अंत नहीं होता है।।
पर जिसका मन, यहां पर संतोषी जन होता है।
उसका मन जग-दलदल में कमल तन होता है।।
इच्छा एक पूरी हो, दूजी उभरता गगन होता है।
इंद्रियों का कभी एक पल भी शयन नहीं होता है।।
पर जिसका अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण होता है।
वो इंद्री तूफान में एक अडिग हिमालय न होता है।।
ख्वाहिशों का ये समंदर कभी कम नहीं होता है।
मरकर भी कभी इच्छाओं का अंत नहीं होता है।।
जैसे चाशनी में उलझकर, मक्खी का मरण होता है।
वैसे मनुष्य का इच्छाओं में उलझकर क्रंदन होता है।।
जिसके भीतर नित इच्छाओं का रावण दहन होता है।
वहीं पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म होता है।।
जहां नित ही समय-समय पर इंद्रिय दमन होता है।
वो जितेन्द्रिय जन, सच में खिला हुआ सुमन होता है।।
इच्छा फेर में 84 लख योनियों में भ्रमण होता है।
अंत में गर मनुष्य, चाहे उसका पथ खत्म होता है।।
कहते है, जैसा जिसका अंत में, साखी मन होता है।
वैसा ही उसका वास्तव में यहां पर जन्म होता है।।
जो मनुष्य बालाजी की ही हर पल शरण होता है।
उसके स्मरण मात्र, से इच्छा का पूर्ण बदन होता है।।
भीतर जिसके नित राम नाम, हनुमत भजन होता है।
वो जग-इच्छा समंदर में तैरता हुआ कमल होता है।।
