"किसको भला क्या कहे"
"किसको भला क्या कहे"
किसको भला हम क्या कहे
सब दुःख, हमने अकेले सहे
जिसे हम मानते, अपने रहे,
वो बस आईने के आईने रहे
जब ख्वाब टूटा पता चला
हम तो दिन मे ही सोते रहे
दिन के उजाले, भी अंधेरे रहे
जब हम अंधेरे के साथ रहे
अब दीये जलाकर क्या करे
जब भीतर ही अंधेरे भरे रहे
सांप यूं ही, बदनाम होते रहे
इंसां, सर्प से ज़्यादा, डसते रहे
जिसके लिए, ताउम्र मरते रहे
वो खूनी रिश्ते रंग बदलते रहे
यही, इस दुनिया की सच्चाई है
सबके सब लोग स्वार्थी भाई है
जिसको, हम ज्यादा चाहते रहे
वो ही लोग हमसे दगा करते रहे
जो इस जिंदगी को समझते रहे
वो भला फिर कब हंसते रहे?
किसको भला हम क्या कहे?
सब दुःख, हमने अकेले सहे
वो साये खुद के संग चलते रहे
जो सत्य के दीप बन जलते रहे
जो जग के मोह से न छलते रहे
वो शूल बीच फूल से खिलते रहे
वो लोग सुख झरने बहाते रहे
जो दुःखों में पर्वत बनते रहे
जो लोग इस जमीं से जुड़े रहे
वो अम्बर तक को झुकाते रहे
किसको भला हम क्या कहे?
सबको ही कर्मो के हिसाब से
अपने-अपने फल मिलते रहे।
