पाखंडों से मुक्ति
पाखंडों से मुक्ति
कब तक भारत को मिलेगी
सियासी पाखंडों से मुक्ति
दूर दूर से मिलती नजर नहीं
आती कहीं से कोई आश्वस्ति
सभी राजनीतिक दलों मेंं लगी
है सच से नजरें फेरने की होड़
बड़े मुद्दों को छोड़कर लगा रहे
सब कुर्सी पर कब्जे की दौड़
बेरोजगारों की बढ़ती कतार
किसी को नहीं करती है बेचैन
सिर्फ अपनी सुविधाओं पर टिके
सांसदों और विधायकों के नैन
जब तक तय होगी नहीं देश में
जन प्रतिनिधियों की जवाबदेही
तब तक देश के लोग विकास के
लिए भटकेंगे दर दर बने बटोही।
