बेटी का दर्द
बेटी का दर्द
कैसी है ये जिंदगी,
कभी समझ ना आता हैं,
हर सपना टूटा बिखरा नजर आता है।
किस्से बड़े अजीब है,
लोग बड़े खामोश है,
गलत होने पर आवाज ना उठाई जाती हैं।
रिश्ता बनाते हैं लोग तोड़ देते हैं,
लोग प्यार के नहीं पैसों के भूखे होते हैं,
क्यों दहेज के कारण लड़की सताई जाती है।
बेटी को बोझ समझा जाता है,
ससुराल में तिरस्कार किया जाता है,
बेटी को जग में रुलाया जाता है।
गरीब बेटी को निशाना बनाया जाता है,
खेलते है लोग उनके जज्बातों से,
रिश्ता जोड़कर तोड़ा जाता है।
कैसी आंधी आई है आज के दौर में,
लड़की नहीं पैसों को देखा जाता है,
दहेज के कारण नारी को जिंदा जलाया जाता है।
बंद करो ये तूफान,
नारी के जीवन को तहस महस करा जाता है,
बनकर एक दहेज की चिंगारी आग लगा जाता है।
बेटी, का सम्मान करो,
जग को चलाने वाली है,
बेटी, बहू, माँ बनकर हर फर्ज निभाने वाली है।
