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Kumar Vikrant

Romance Tragedy

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Kumar Vikrant

Romance Tragedy

पुरवा

पुरवा

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आज सुबह ये जो पुरवा आई है

कुछ उदास-उदास सी है 

इस पुरवा से भी नहीं छिपी है 

चारो और फैली हुई तन्हाई। 

अब ये पुरवा 

न जान सकेगी 

भेद तेरी उन मुस्कराहटों का 

जिनसे इस घर का कोना-कोना 

आबाद था। 

अब ये पुरवा 

न उड़ा सकेगी 

तेरे माथे पर पड़ी उस लट को

जिसे तुम कभी मुस्कराते हुए 

अपने होटों की फूँक से 

कभी-कभी 

ऐसे ही उड़ाती रहती थी। 

अब ये पुरवा न बिखेर सकेगी 

उन अधलिखे पन्नो को 

जिनपे तुम न जाने क्या-क्या 

लिखती रहती थी। 

आज सुबह ये जो पुरवा आई है। 

कुछ उदास-उदास सी है

क्या इसे भी पता है कि 

तुम जा चुके हो 

फिर से न लौट के आने के लिए?


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