डरे हुए से लम्हें
डरे हुए से लम्हें
डरे हुए से लम्हें, वो डरा हुआ सा मंजर याद आता है,
हर घड़ी, पग-पग पर वो मौत का साया याद आता है,
ऐसे दिन आएंगे, ख़्वाबों में भी किसी ने ना सोचा था,
कोरोना वायरस का वो विनाशक तांडव याद आता है,
कैद होकर एक जगह ठहर सी गई थी सबकी जिंदगी,
हर शहर, गांँव में पसरा हुआ वो सन्नाटा याद आता है,
उजड़ गई कितनों की दुनिया, बुझ गए कितने चिराग़,
बेबस, लाचार आंँखों से बहता वो अश्क याद आता है,
काम काज सब बंद हो गए थे, भाग रही थी ज़िदगियांँ,
पांवों में छाले,भूख,मजबूरी का वो सैलाब याद आता है,
कतरा-कतरा सांँस के लिए तरस रहा था मानव जीवन,
इलाज का अभाव,वो इंसान का बिखरना याद आता है,
हर तरफ गूंँज रही थी दर्द,तकलीफ की करुण आवाज़ें,
अपनों से दूर होने का वो दर्द भरा एहसास याद आता है,
सामान्य ज़रूर हो गया है जनजीवन पर ख़तरा टला नहीं,
रूह कांँप जाती है सोच कर जब भी वो डर याद आता है।
