अंतरिक्ष से
अंतरिक्ष से
पंहुच गए सकुशल भैया हम यहां-
है उबड़ खाबड़ ज़मीन यहां,
ऑक्सीजन है नही- कितना खाली खाली सा-
वीरानी है, एक सनसनी चुप्पी है
बेजान, नीरस , खाली खाली!
पानी नहीं..कुछ भी नहीं
पर कोई बात नहीं..ज़्यादा समय न लगेगा
हम बीस जन यहां..बांटेंगे काम, हो जाएंगे शुरू
अपना झंडा लहराएंगे- क्या पता मिल जाएँ यहां कुछ लोग अपने जैसे
उनपर धाक जमाएंगे- नहीं माने तो क्या
हैं अपने पास कुछ ऐसे तौर तरीके, ऐसे औज़ार
कुछ भी न कर पाएंगे हमारी ताक़त के आगे
बढ़ेगी दिन दूनी रात चौगुनी अपनी जन संख्या
जात पात क्या जानें बेचारे..
सिखाना पड़ेगा बहुत कुछ इन्हें
ख़ैर, देर आए दुरुस्त आए..
अब तक तो थे अनजान जो हमारी सभ्यता,
संस्कृति से बहुत जल्द इन भोले भालों को
ला खड़ा करेंगे पटरी पर
धरती जैसे स्वर्ग के हकदार सभी
क्यों वंचित रखें इन्हें जीवन की खुशियों से
फलें फूलें हमारी तरह, पैसे की कीमत समझें-
बस यहीं से शुरुआत अंतरिक्ष पर
एक नए अभियान की!
अभी तक तो है उड़ान बस चांद तक ही
पूरे अंतरिक्ष पर है नज़र हमारी!
कुछ भी नामुमकिन नहीं इस दुनिया में
धरती को भी कर देंगे शर्मिंदा,
ऐसी होगी धाक हमारी!
