फुटबॉल प्रेम
फुटबॉल प्रेम
कमी नहीं खेलों की लेकिन,
पसंद का सवाल है।
जी मैं पेरिस में हूं रहता,
प्रिय मुझको फुटबॉल है।
एक अकेला नहीं हूं मैं,
साथी मेरे हजार हैं।
फुटबॉल के प्रेमी कुछ यूँ
ज्यों एक अनार सौ बीमार हैं।
जिंदगी की आपाधापी,
आजीविका प्रयत्न जरूरी है।
लेकिन प्यारे खेल को वक्त देना,
मन की भी मजबूरी है।
फुटबॉल प्रेम की देश में अपने,
मिलती कई मिसाल है।
गुजर जाओ किसी भी ओर से,
चहुँ और छाया फुटबॉल है।
माना ऑफिस ,दफ्तर भी हम
पूरे मन से जाते हैं।
लेकिन वक्त निकालकर निष्ठा,
फुटबॉल के प्रति निभाते हैं।
जब अपने पैरों से उस पर,
सही निशाना लगता है,
अपनापन बस वही मिले और,
जग बेगाना लगता है।
यही हमारी कामना और
यही हमारा ध्येय है।
रहे सदा इस खेल में आगे
अपना प्यारा देश है।