फ़र्क...
फ़र्क...


इक महीन सा फ़र्क होता है…
सलाह लेने में…और…
दूसरों के विचारों को आत्मसात करने में…
फ़र्क है…
मदद के लिए हाथ बढ़ाने…और..
पूर्ण रूप से निर्भर हो जाने में…
फ़र्क है…
अपनी कमियों को स्वीकारने में… और…
अपनी मौलिकता को अंततः बरकरार रखने में…
फ़र्क है…
चुनौतियों को गले लगाने में… और…
विफल होते हुए भी उत्कृष्टता की ओर क़दम बढ़ाने में…
जिंदगी के उतार चढ़ाव में…जाने क्यूं..?
हम भूल जाते हैं…कि…
यह महीन सा फ़र्क ही…
जिंदगी के हर मोड़ पर बड़े परिवर्तन की नींव साबित होता है…