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Sonali Tiwari

Classics

4.8  

Sonali Tiwari

Classics

वो कोना

वो कोना

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यूं तो अपना घर हर किसी को अज़ीज़ होता है

पर उससे भी ज्यादा हृदय के करीब होता है

‘वो एक कोना’ जो हमारा सिर्फ हमारा होता है


वही कोनाजो किसी अलग आवरण में ढला नहीं होता

न ही किसी ख़ास कलाकृति से अलंकृत होता है

पर वो आम सी दिखने वाली जगह

हमारे लिए बेहद ख़ास होती है


कुछ नादानियां जो सिर्फ हम तक कैद हैं

वो कोना सबकुछ जानकर मुस्कराता है

जब भी हम खुशियों में सराबोर हों

वो कोना हमारे संग खिलखिलाता है


कोई तकलीफ़ जब हमें पूरी तरह बिखेर दें

वो कोना ही हमारी सिसकियों को संभालता है

हमारी चंचलताहमारी ख़ामोशी को

 हमारे एहसासों हमारी नादानी को

हमारे विचारों हमारी आदतों को


वो कोना ही शायद बेहतर समझता है

हर उस पल जब हम कमज़ोर पड़ते हैं

वो कोना ही हमारा संबल बनता है

‘वो कोना’सिर्फ एक स्थान मात्र नहीं रह जाता


बल्कि हमारी ज़िन्दगी की मसाफ़त में

एक यगाना साथी बन जाता है।


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