फ़र्ज़
फ़र्ज़
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यह ज़िंदगी तुझे कितना चाहते हम
रुक अगर साँसें तो रुक जाओगी तुम
वीरान पद जाएगा जहां अपनों का
सोच कर दिल घबराता है
नहीं देना चाहती में सबको ग़म
वक्त से पहले ना हो जाए यह खत्म
बस ख़ुदा इतना तो वक्त दे दे
अपना सारा फ़र्ज़ हम निभा दे
ख़ुशी देकर जाए हम सबको इतनी
की मेरे जाने का ग़म पद जाए नम।