चोट
चोट
चोट लगी दिल में जो आसानी से ना दिखे
मन में घाव लगा जो मरहम से ना भरे
गहरायी इतनी इसकी जो ऊँचाई से भी ना दिखे
पर आँखें है जो आंसुओं से भरी नदियाँ बहाती रहे
बस इतना करना ऐ चोट जो सागर बने तो
पानी बनकर किनारे पर ही रहना
फिर ना आना इस दिल में
वक्त के साथ गुम हो जाना सागर की गहराइयों में
