संपूर्ण
संपूर्ण
आज सूरज की ओर देखने से आँखें नहीं झपकती
तेज उसका मुझे यूँ रोशनी से भर दे
की मैं चाँद की चाँदनी बन गयी
आसमान से लेकर ज़मीन तक पहुँचती
यह सफ़ेद चादर बुनती नयी उम्मीद की रेखा
जिसकी सीमा नहीं में नदी बनती
दुनिया की इस गोलाई में
ढूँढती में एक सूरज की चोटी सी किरण बनती।