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Minal Aggarwal

Children

4  

Minal Aggarwal

Children

पहला ट्रिप और मेरे जूते

पहला ट्रिप और मेरे जूते

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मेरा स्कूल में 

एडमिशन नर्सरी क्लास में हुआ था 

जो हमारे घर के 

बहुत पास था 

पैदल का रास्ता था लेकिन 

हमारे जमाने में स्कूल 

आज की तुलना में अधिक न होकर

कम होते थे लेकिन यह एक

अच्छा स्कूल माना जाता था 

बहुत अच्छे से तो नहीं लेकिन 

थोड़ी थोड़ी 

धुंधली धुंधली 

यादों का पिटारा है 

दरअसल उम्र भी तो 

बहुत कम थी 

यही कोई लगभग तीन साल 

हम छोटे छोटे 

नर्सरी के बच्चों का ट्रिप

जो मेरी जिंदगी का 

पहला ट्रिप था 

मथुरा वृंदावन गया था 

दिन भर खूब घुमाया 

होगा 

खिलाया पिलाया होगा 

स्कूल की टीचर्स और 

टीम आदि ने 

बहुत बारीकी से कुछ भी 

बताना मुश्किल प्रतीत हो 

रहा है 

लेकिन हां एक बात जो 

अच्छे से 

एक साफ शीशे की तरह 

अभी भी चमकती है 

वह यह कि 

वापसी में 

लौटने में 

ज्यादा समय लग रहा था 

रात गहरा रही थी

दिन भर की मस्ती और

शैतानी के कारण

मुझे नींद आ रही थी 

शहर में प्रवेश करते ही 

पहला चौराहा पार करते ही 

सीधे हाथ पर 

मेन रोड पर 

मेरा घर था 

मुझे आगे वाली सीट पर 

बिठाया गया था 

क्योंकि मेरा घर 

सबसे पहले आना था 

मैंने लाख कोशिश करी कि 

मेरी आंख न लगे लेकिन 

घर तक पहुंचते पहुंचते 

मुझे झपकी आ ही गई 

मेरे मां बाप मुझे बस से 

उतारने के लिए 

सड़क पर ही खड़े थे 

बस रुकी 

सबने मुझे नीचे उतर जाने के 

लिए 

जोरों से आवाज लगाई लेकिन 

मैं कहीं गहरे सो गई थी 

बस के झटके से 

रुकने और 

शोर शराबे से 

मेरी आंख खुल गई लेकिन 

मैं तब भी नींद में थी 

कच्ची पक्की नींद में किसी ने मुझे 

थोड़ा बहुत पैदल चलाकर मेरे मां बाप को 

मुझे सौंप दिया 

उन्होंने मुझे गोद में ले लिया 

मुझे उतारकर बस चल दी 

बाद में मेरे मां बाप ने देखा कि 

मेरे पांव में तो जूते ही नहीं हैं

वह तो जल्दबाजी में बस में ही 

रह गये थे लेकिन 

सुबह स्कूल से 

जहां तक है 

मिल ही जायेंगे

यह तो इत्मीनान था 

घर के अंदर 

पहुंचने तक तो 

मेरी भी आंख खुलने लगी 

थी और 

मुझे अपने जूतों की चिंता 

सताने लगी थी 

स्कूल में नया एडमिशन 

था और 

मेरे जूते भी तो नये थे 

लेकिन 

थैंक्स गॉड 

सुबह स्कूल पहुंचने पर 

मेरे जूते मुझे वापिस 

मिल गये 

ट्रिप से ज्यादा तो 

मुझे मेरे जूते 

सही सलामत वापिस 

मिलने की खुशी अधिक हो 

रही थी 

कोई चीज कहीं छूट गई हो 

वह खो सकती हो लेकिन 

कहीं गर वह वापिस मिल 

जाये और वह भी 

बिल्कुल सही अवस्था में तो 

अपनी किसी चीज को वापिस 

पाने वाले की खुशी की 

कोई सीमा नहीं होती 

कोई ठिकाना नहीं होता 

इस खुशी में एक अलग तरह की 

ही उत्तेजना 

एक अलग तरह की तरंग 

और मीठी सी चुभन वाली अनुभूति 

होती है।


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