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Mr. Akabar Pinjari

Romance Others

5.0  

Mr. Akabar Pinjari

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फिर भी मैं पराई हूं

फिर भी मैं पराई हूं

1 min
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वह समंदर में लहराती मौजों की गहराई हूं,

दरिया का वजूद होकर, फिर भी तो पराई हूं।

तू पूरब है, तो पश्चिम की तन्हाई हूं मैं,

तू पाकीज़ा दिल है, मेरा फिर भी मैं पराई हूं।


जुल्फों में तेरे, जन्नत का महकता नशा है,

तू गुल नहीं, हुस्न-ए-गुलशन का गुलदस्ता है,

यह शोखियां तेरी अदाओं की, प्यासी ही सही,

मैं गुड़िया नहीं खिलौनेवाली, तेरे मन की लुगाई हूं।


तू पुकारे तो, मंज़िल बदल जाती है मेरी,

तेरे ख्यालों से ही, परछाई बदल जाती है मेरी,

जीतकर सारा जहां, जो अब भी बाकी है मेरे लिए,

तेरी आगोश के लिए तरसती, मैं वो रहनुमाई हूं।


क्यों राब्ता नहीं होता है, तेरे मिलन का मुझे,

लबों पर तेरे होने का वो एहसास, आज भी है मुझे,

वह इश्क-ए-तीर, कुछ इस तरह लगा है मुझे,

तेरी जोगन होकर भी, इस भरी महफ़िल में, फिर भी पराई हूं मैं।


मेरे हौसलें से भरा तेरा, हाथों में हाथ चाहिए,

तेरे होने की कुछ ख़ास, निडर आवाज़ चाहिए,

ये रंगीन मौसम आज भी, तरो-ताजा तेरे मिलाफ से,

बस, मुझे तेरी मौजूदगी का, कुछ तो इलाज़ चाहिए।


सुबह से लेकर, शाम तक ढल जाती है, तेरे इंतजार में,

भूलकर ज़िक्र-ए-ख़ुदा, हम तो डूब चुके हैं, तेरे इकरार में,

दिलों में जिंदा रखकर, मोहब्बत वो चिराग़, आज भी शरमाई हूं मैं,

लगता है तेरा दामन पाकर भी, इस राधा को की, आज भी पराई हूं मैं।


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