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Kusum Joshi

Classics

5.0  

Kusum Joshi

Classics

पदचिन्हों की आवाज़

पदचिन्हों की आवाज़

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रास्ते सुनसान थे,

आवाज़ पदचिन्हों की लेकिन,

दे रही हमको सुनाई,

रास्ते ने चुपके-चुपके,

की थी जिनकी रहनुमाई।


कई युगों कई काल से,

इस राह पर चलता मनुज,

बाधाएं सब तोड़,

झंडे गाड़ कर बढ़ता मनुज।


संघर्ष की सब दास्तां,

जो राह के मन में समाई,

उस दास्तां की थाप ही,

अब दे रही हमको सुनाई।


हम चले इस राह पर,

सोचा कि हम ही राही प्रथम,

पर बढ़े जब राह में तो,

टूटा अपना छद्म सा भ्रम।


हम सोचते थे हम ही निकले,

बंधन वो सारे तोड़कर,

या कि लिखने नई इबारत,

वो कथा पुरानी छोड़कर।


पर राह ने जब उन सभी,

पुरोधाओं की कहानी सुनाई,

राह में पदचिन्ह उनके,

अब हमें देते दिखाई।


हमसे पहले भी चले,

राही के इस मोड़ पर,

कुछ ने खोया कुछ ने पाया,

रास्ते पुराने छोड़कर।


पर एक जीत सबको मिली,

इसमें ना कोई भेद था,

अनुभव मील कितने नए,

इससे बड़ा अभिषेक क्या।


उन अनुभवों की ही चमक ने,

राह ये रोशन बनाई,

इस रोशनी में ही हमें अब,

मंज़िल अपनी देती दिखाई।।


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