पौष की सर्द में दिल जलाता रहा
पौष की सर्द में दिल जलाता रहा
ख्वाब में रात भर कोई आता रहा
पौष की सर्द में दिल जलाता रहा
वो मुझे रात भर ही जगाता रहा
रात भर मैं उसे ही सुलाता रहा
दिल दिया था जिसे प्यार हमने किया
वो गया छोड़कर मैं बुलाता रहा
तोड़कर दिल हमारा वो खुश हैं बहुत
हिज़्र मैं जिनकी आँसू बहाता रहा
जानते थे उसे छोड़ना हैं हमें
घर किराये का मैं भी सजाता रहा
राह में ही हमारी मिले खार हैं
राह से मैं सभी के हटाता रहा
हो गया है सुखनवर धरम आज कल
शायरी दर्द पर तू बनाता रहा