Manisha Singh

Romance

5.0  

Manisha Singh

Romance

भर दो अपना नाम

भर दो अपना नाम

2 mins
510


मैं उठ तो जाती हूँ हर सुबह 

पर आंखें मेरी सिर्फ खुलती हैं

सुनकर वह एक आवाज।


दिन शुरू तो यूँ घर से

निकलकर हो ही जाता है 

सूरज उग जाता है,

खिड़कियाँ-पर्दे खुल जाते हैं 

पर वो उजाला एक शक़्ल लाती है

वह शक़्ल जिस पर 

हर उजाला करे नाज़।


जो उसे ना देखूँ

एक अधूरापन सा लगता है 

जैसे कोई गाना 

जिसे मैं यूँ ही 

गुनगुनाना शुरु कर तो देती हूँ 

पर आगे कहीं जाकर रुक जाती हूँ 

उस आधे गाने को

जैसे पूरा कर देता है ना एक साज़ ? 


बस, बिल्कुल वैसे ही 

मेरे हर दिन,

हर लम्हे के खालीपन को

भरता है एक अंदाज़

वक्त का कोई ठिकाना नहीं रखती 

बस उसी लम्हे से होता है

मेरे दिन का आगाज।

 

चाहे सुबह हो, या शाम

उस नाज़- आवाज़,

उस साज़ -अंदाज़,

उस आगाज़ में

तुम बस भर दो अपना नाम।


तुम्हें केवल याद करती हूँ 

मेरा यह कहना मजाक है 

हाँ अगर ये बोलो कि

मेरे हर दिन के, हर घंटे के 

हर मिनट के, एक एक पल में 

चलता रेहता है एक ख़्याल।

 

उसे इससे ज़्यादा और

हुई चाह सकती हूँ ? 

पूछे हर सवाल 

मेरे लिए सबसे,

सबसे कीमती वो है 

उसे कहीं खो ना दूँ, इसी डर से 

दिल मे रहता है बवाल।


खौफ उसे खोने से ज्यादा 

खुद को खोने का है 

इस दिल के टूटकर,

बिखर कर, रोने का है 

देखकर समझ जाना, 

पूछ मत लेना, शब्दों से तो कभी 

कभी बयान नहीं कर पाऊँगी

अपना हाल। 


उससे इश्क करना काम नहीं 

मेरी सांसों के लिए है आराम 

बस उस ख्याल, उस सवाल,

उस बवाल, मेरे हाल में, 

भर दो अपना नाम।


याद करना मजाक है, 

पर ये प्यार नहीं 

उसे छेड़ना मज़ाक है 

पर ये आई लव यू यार नहीं 

लोगों की नज़रें मजाक है।


पर उसकी एक झलक का

इन्तज़ार नहीं 

समय ढल जाएगा

जो जैसा है वैसा चल जाएगा 

उसे हँसता हुआ देखकर 

यह दिल सम्भल जाएगा।

 

तस्वीरों की लकीरों में ही नहीं,

तकदीर की लकीरों में भी

अपना साथ करना है उसके नाम

उस प्यार में, इन्तजार में,

हँसी के उस दीदार में,

साथ देने वाले प्यार में

सोचो मत, आओ 

भर दो अपना नाम।


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