मुझे कोई शिकायत नहीं तुझसे
मुझे कोई शिकायत नहीं तुझसे


मुझे कोई शिकायत नहीं तुझसे तेरे लिए फैसलों पर सवाल नहीं तुझसे
हां माना तेरे फैसले से नाराज अभी तक हूं
तू ले गया अपने साथ लफ्ज़ भी मेरे इसलिए खामोश अभी तक हूं
वह बेनाम रिश्ता नहीं है दरमियां नजदीक तेरे अभी तक हूं
तुझमें कहीं उलझी हुई सी मैं अभी तक हूं
जब बातें वह प्यार वाली शुरू हमारी हुई थी
कुछ आदतें और बातें हमने बयां खुद के बारे में की थी
तूने बताया था तू तन्हा है अकेला है आसमान में टूटा एक तारा सा है
मैं तुझ जैसी नहीं थी
मैं तुझ जैसी नहीं थी मैं बिन मौसम बारिश की बूंदे थी
मैं बिन रितु एक पतझड़ सी थी
कुछ देर चुप रहने से मुंह जिसका दुख जाया करता था
हां मैं अपने पापा की वही प्यारी सी गुड़िया थी
तुझे बताया था मैंने मेरी ताकत और कमजोरी क्या थी
किसी का बेशुमार हो जाना और फिर उसे
बयाँ ना कर पाना मेरी शुरू से ही कमजोरी थी
दुनिया से थोड़ी अलग शायद मैं थी
और आंखों से बया हो जाता है इश्क
इस बात को भी सच मान बैठी थी
थोड़े पुराने खयालो कि शायद मैं थी
इश्क को जुबान की जरूरत है इस बात से
अनजान थी तुझे बता ना सकी तेरे लिए कितनी मोहब्बत थी
शायद इसीलिए जिंदगी तेरा हाथ मेरे हाथ से छोड़ा चुकी थी
तूने कहा हम अब दोस्त है वैसे भी मंजिल कहां दोनों की साथ लिखी थी
लोगो से सुना था जिससे मोहब्बत हो जाए उससे सिर्फ दोस्ती रखनी ठीक नहीं थी
पर तुझे पाने की उम्मीद भी मैं यू छोड़ नहीं सकती थी
तेरा वह दोस्ती का बढ़ाया हुआ हाथ मेरी रूह छू गया था
रो या खुश हो जाऊं आंखों और होठों के
बीच एक महाभारत शुरू हो गया था
तुझसे मिलने के लिए अब सोचना पड़ रहा था
तुझे देख कर अश्क ना बहा जाऊं यह सवाल मन में उठ रहा था
तुझसे दूर जाने का साहस नहीं रखती थी
और शायद तू मेरा हो जाए यह उम्मीद अब भी दिल में रखती थी
दिल और दिमाग के बीच मैंने फिर दिल को जीतने दिया था
और ज्यादा मत सोच कह कर दिमाग को चुप भी करा दिया था
तेरा दोस्ती का बढ़ाया हुआ हाथ मैंने थाम लिया था
पर लफ्जों से ना करूंगी मोहब्बत बयान
यह भी दिल को समझा लिया था
मेरी खैरियत को सच समझ बैठने की भूल तुझसे हो गई थी और
अब रेडियो सी बजने वाली वह गुड़िया ताउम्र को खामोश हो गई थी।