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Aakansha Garg

Romance

3.7  

Aakansha Garg

Romance

ख़्वाहिश का बक्सा

ख़्वाहिश का बक्सा

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चल आज तेरी मोहब्बत का हिसाब करती हूं

चल आज तुझे तेरे सवालों का जवाब देती हूं

तूने पूछा था जाते वक्त क्या चाहिए मुझे तुझसे

जवाब मेरा ना था पर ख़्वाहिश से भरा एक बक्सा था


तूने पूछा था क्या मैं बहुत बुरा हूं

गुस्से में होठों पर हां पर दिल में मेरे ना था

तूने हाल मेरा मुझसे पूछा था

फिर खैरियत का लिफाफा सा खुला था


पर तुझ बिन जरा भी ठीक नहीं हूं मैं

यह पन्ना तूने पलटा भी ना था

तूने पूछा था मुझसे मोहब्बत क्यों करती हो

तो सुन मुझे तेरी आंखों में एक आईना सा दिखता था

तुझे आंखों से संवारने का दिल चाहता था

बंदा तो हमें तू भी इश्क में लगता था।



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